भोला
भोला
कोरोना काल में मैं घर में बंद रही...
पढ़ती रही, पढाती रही...
आज बहुत दिन बाद मैं घर से निकली..
जरूरी वस्तुएं खरीदीं,
राह में कुछ साथी मिले...
कुछ बोले.. कुछ निस्तब्ध!!!
कुछ खिले -खिले.....
बातें हुईं, मन खुले
भेद खुले... कुछ रहे अ..न..खु..ले...
अचानक मैंने देखा
मेरे तीन साथियों के साथ वह भी खड़ा है...
मौन , शांत!!!!
मेरे समीप आया, थोड़ा सा स्पर्श किया..
दूर हट गया...
मैंने स्नेह से कहा... अरे भोला!!!
बस, वह नाच उठा...
मुदित मन से अपनी पूंछ हिलायी...
मैं उसके स्नेह के मूक स्वर से विह्वल हो उठी...
पशु कहे जाने वाले की ,
मानव से बड़ी, मानवता की पराकाष्ठा!!!
जहाँ हम इंसान कभी पहुंचे ही नहीं।।
