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Rajesh Upadhyaya

Inspirational

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Rajesh Upadhyaya

Inspirational

मैं हूँ हिन्दी

मैं हूँ हिन्दी

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मैं हूँ हिन्दी, सुनो सब कहानी मेरी...

जो है सबसे निराली निशानी मेरी।

देवनागरी है लिपि, जो है मेरी सुता,

शब्द सुत हैं मेरे, वर्ण उनके पिता।।

         वाक्य परिवार हैं, और मां सन्धियाँ,

         समास काका मेरे, लिंग वचन दो बुआ।

         छंद, तुक और लय से ही, कविता बनी,

         ये है शब्दों की मेरी ही जादूगरी।।

रस, रंग, रूप सब उनमें मैंने भरे,

वे हैं सुंदर सुनहरे से सपने मेरे।

गीत और गजल दो मेरी सहपाठियां

भाषा विज्ञान मेरे गुरु थे अमर,

उनके भी गुरु थे..पाणिनि प्रवर।।

          फिर एक दिन मैं लगी सोचने..

          बढ़ रहा विश्व मैं भी तो आगे बढूँ।

          कर संकल्प अपना उपन्यास से ...

          मैंने दिखलाई दुनिया को अनुपम विधा...।।

मेरे साथी बने फिर थे कुछ निबंध..

यूं मैंने ही तुमको खजाना दिया।

एक शाम आयी थी कुछ अनमनी....

एक गजल मेरी गोदी में यूं चू पड़ी..

उस गजल को उठाया लगाया गले,

बना संस्मरण फिर मैं चल पड़ी।।

            खड़ी थी किनारे.. किसी ने मुझे!!!

            पुकारा रिपोतार्ज के नाम से...

            नये युग में, कुछ नये काम से।

            नयी कविता, नव प्रयोग बने...

             ये आंचल में मेरे दो हीरे जड़े।।

संज्ञा बनी मेरी कारीगरी,

विशेषण की खुशबू मैंने भरी।

सर्वनामों से शब्दों को जाना गया..

सर्व देशों की यूं लाड़ली मैं बनी।।

            कई आये जलाने मुझे, जल गये,

            कुछ आये किनारे, मुझी में मिल गये।

            छोड़ अपनी भी भाषा के अवशेष वे,

            पास आकर मेरे तद्भव बन गये।।

फिर विदेशी बहिन आ के रोने लगी...

अपना लो मुझे, मेरा कोई नहीं

उसका रोना सुना.. मुझको आयी दया,

शब्द उसके पड़े थे बिखरे कहीं..

उन सबको समेटा.. आंचल में मेरे..

साथ लेकर चली, और उड़ती गयी।।

             आज साथी मेरा ये जमीं आसमां,

              पर सुनानी पड़ी है मुझे ये जुबां..।

              मुझको समझो न तुम गैर...???

              मैं हूँ... राजभाषा मां।

              देखो उंगली मेरी तुम सभी थाम लो।

              पुकारो मुझे कर मेरी वन्दना।।

             



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