प्रकृति का सौंदर्य
प्रकृति का सौंदर्य
नीरदमाला हिमगिरी पर
ऐसे आकर पैठ गई।
जैसे पीहर गई हो कोई
जननी संग हेै बैठ गई।
दूर क्षेत्र से दिखता ऐसा
जैसे दोनों एक ही हैं
लेकिन खिलते ही घाम को
जैसे लगता चली धाम को।।
रंग सुनहरा पवन सुनहरी
घटाएँ लगती घनघोर घिरती
मन के दृश्यपटल पर जब
ऐसा कोई चित्र आता है।
गाँव अपना वह अक्सर
अनिमेष-अटल ही याद आता है
अनिमेष -अटल ही याद आता है।।
