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Govind Pandey

Romance Inspirational

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Govind Pandey

Romance Inspirational

प्रातःकाल

प्रातःकाल

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प्रातःकाल का सूरज निकले, चमके और निखरे,.

उससे पहले ही आकर गोधूलि अपना प्रकाश बिखेरे।।


नन्हीं रंगीड़ी चीं-चीं कर, नींड़ों के हैं पट खोले,

होने को हेै सूर्योदय,जागो ! अपनी भाषा में यह बोले।


प्रातः का जो आलस करता, दिनभर पीछे रहता हेै।

इसीलिए फिर वह, हैरान-परेशान ओ उलझन में ही रहता है।।


शबनम की हैं बूंदें अटकी, पत्तों की भी नोकों पर,

उसमें भी है हलचल होती, हवा के नन्हें झोंकों पर।


यह मधुर समय है बेला हेै, इसे न तुम ऐसे ही खोओ।

उठो आलस त्यागो अब, अब तो जागो अब मत सोओ।।


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