शीत की वर्षा
शीत की वर्षा
जलद घटा घनघोर घिरी
आज बनकर बूँदें कुछ
धरा की प्यास बुझाने
बनकर नीर हेै बरसी।
शीतागमन तो पहले ही था,
उसमें रंगत और बढ़ गई।
जब वर्षा के बाद सुनहरी
प्यारी स्वर्णिम धूप जो खिल गई।।
यह मनोरम खेल प्रकृति
खेल रही लगता आँख-मिचौली।
कभी धूप खिली है पूरी तरह
कभी छुप गया है दिनकर
कभी-कभी यह दृश्य बन जाता बिचौली।।
