STORYMIRROR

Govind Pandey

Inspirational Others

3  

Govind Pandey

Inspirational Others

शीत की वर्षा

शीत की वर्षा

1 min
146

जलद घटा घनघोर घिरी

आज बनकर बूँदें कुछ

धरा की प्यास बुझाने

बनकर नीर हेै बरसी।

शीतागमन तो पहले ही था,

उसमें रंगत और बढ़ गई।

जब वर्षा के बाद सुनहरी

प्यारी स्वर्णिम धूप जो खिल गई।।

यह मनोरम खेल प्रकृति

खेल रही लगता आँख-मिचौली।

कभी धूप खिली है पूरी तरह

कभी छुप गया है दिनकर

कभी-कभी यह दृश्य बन जाता बिचौली।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational