सिद्धता
सिद्धता
आशा गई न विश्वास मरा
लेकिन रह गया सब धरा
जब धरा पर धरा रहा जो
था शरीर धरा-धरा।
मन विचलित था मन व्याकुल
छोडूँ कैसे यह धरा अति आकुल
लेकिन खेल है यह प्यारे
लगते बुरे कुछ हैं न्यारे
ऐसा ही कुछ दृश्य रहा
होते हुए भी सब कुछ प्यारे
सब कुछ ही अदृश्य रहा।
दृश्य-अदृश्य और मनःगति
होती जब उम्र ओ समय की अति
तब ऐसा दृश्य अवलोकता है
अदृश्य रहकर भी दृश्य सब
वह पूर्णता खोजता है।
जब यह पूर्णता ही
पूरी हो जाती है
तब इस दृश्यता की
संपूर्णता भी सिद्ध हो जाती है
सिद्ध हो जाती है।।
