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Govind Pandey

Abstract

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Govind Pandey

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चंदा

चंदा

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कभी-कभी जो आसमान में

संध्याकाल ही दिख जाता है।

कभी-कभी इसे दिखने में

प्रातःकाल भी हो जाता है।

यह चंदा है बड़ा विचित्र हेै

बचपन में मामा, यौवन में

प्रियतम-प्रियतमा भी प्यारे

इसमें ही तो नज़र आता है।

बृद्धावस्था में यही तो हेै जो

शीतल चाँदनी फैलाकर

जीवनयात्रा की थकान मिटाता है।

ख़ुद बदलकर समय-समय पर

हमको यह बतलाता हेै

हर दिन जीवन में एक नया संघर्ष हेै

जीवन है जड़ता नहीं यह तो परिवर्तन है।


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