चंदा
चंदा
कभी-कभी जो आसमान में
संध्याकाल ही दिख जाता है।
कभी-कभी इसे दिखने में
प्रातःकाल भी हो जाता है।
यह चंदा है बड़ा विचित्र हेै
बचपन में मामा, यौवन में
प्रियतम-प्रियतमा भी प्यारे
इसमें ही तो नज़र आता है।
बृद्धावस्था में यही तो हेै जो
शीतल चाँदनी फैलाकर
जीवनयात्रा की थकान मिटाता है।
ख़ुद बदलकर समय-समय पर
हमको यह बतलाता हेै
हर दिन जीवन में एक नया संघर्ष हेै
जीवन है जड़ता नहीं यह तो परिवर्तन है।
