वीरगति
वीरगति
पीड़ा का दिल पर बढ़ जाता है भार,
आँखों से निर्बाध बह चली अश्रु-धार!
बहती अश्रु-धार आ चली अपनों की,
वीरगति ने दी बलि सबके स्वप्नों की!
वीरगति अहो है वीर का सच्चा गहना,
आज बंद हैं आँखें कि तिरंगा है पहना!
आज भी साथी याद करें क्या लड़ा वो,
बन के वीर भद्र शत्रु पर जा के चढ़ा वो!
ये धरा माँ उसकी, माँ को उसने बचाया,
वीरता से युद्ध करा, वीरगति को पाया!
ऐ माँ! तेरे कोख़ से ये सिंह तूने था जना,
जाते-जाते दिखा गया वो जीवट अपना!
माँ! इस वीर का ये बलिदान स्वीकार कर,
इस तिरंगे को स-गौरव अपने उर में भर!
देश के ऊपर लाल तेरा उधार छोड़ गया,
एक माँ के लिए दूजी का, नेह तोड़ गया!
बस माँ अब तो ये अश्रु-धार न बहने पाए,
वीर माँ है उसकी, कमज़ोर न पड़ने पाए!
माना कि तेरे लिए ये तो अपूर्णनीय क्षति है,
गर्व से जीना तू, तेरे बेटे ने पायी वीरगति है!