नवरात्रा
नवरात्रा
वो हैं अखंड ज्योति का अंग,
ब्रह्माण्ड चलती है जिनके संग,
असुरों की नींद हुई जिनसे भंग,
ऐसे हैं हमारे माता के अनूठे रंग।
धरा और गगन जिनमे है समायी,
भक्तों को अपने समीप है वो लायी,
उनके स्पर्श से प्रकृति भी खिल आयी,
सौंदर्य से परिपूर्ण है हम सबकी मायी।
ज्वाला भरी नैनो से सृष्टि हुई प्रज्वलित,
महाकाली के रूप से दुष्ट हुए विचलित,
आपके साहस ने अंगारों को किया संचालित,
भिन्न परिस्थिति में मैया करती हैं रूपांतरित।
अपने हर रूप से हमारा जीवन हैं संवारा,
तेरे भक्ती बिना ये जिंदगी नहीं हैं गंवारा,
उत्पत्ति से अंत तक, आप ही का खेल है सारा,
मैया के आंचल तले, मिले हर कष्टों से छुटकारा।
दोस्तों, बजने दो रातभर ढ़ोल और संगीत,
थिरक लो जब बजे डांडिया के मधुर गीत,
हो जाओ अपने पापों से थोड़ा भयभीत,
चलती रहेगी हर युग में नवरात्रि की ये रीत।
जय माता दी!