शहर से गावँ तक
शहर से गावँ तक
घर परिवार छोड़ गली पगडंडी मोड़
गाँव छोड़ने की होड़ हर जगह मची है।
सोचता है हर कोई गाँव में कुछ भी नहीँ
बसने लायक जगह यहाँ नहीँ बची है।।
गाँव छोड़कर सभी शहर भागते जो भी
गाँव उनकी आंखों को जंगल सा दिखता ।।
होता एक कहाबत गिधड़ का आये मौत
जंगल छोड़ शहर तरफ ओ भागता।
मिट्टी की मीठी महक चिड़ियों की चूँ चहक
आम अमरूद जाम डालियों से तोड़ना ।
चौअन्नी आठन्नी सिक्के गिल्ली डंडे और कंचे
होड़ हुड़दंग संगी साथियों से खेलना ।।
बहुत हो गया अब छोड़ो हीन मनोभाव
अपनी गाँव को करो स्वच्छ और सुंदर
शिक्षा दीक्षा स्वच्छता से निखारो गाँव को ऐसे
मुड़ मुड़ के गाँव को देखेगा भी शहर।।
