काश
काश
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ए काश!
दरमिया अपने
कोई ‘अगर’ न होता,
किन्ही मजबूरियों का कोई
कभी जिकर ना होता
होता नहीं कोई ‘लेकिन’
तुम्हारी प्यार भरी पुकार में
तुम्हारा मेरा हो जाने में कोई ‘मगर’ न होता
ए काश!
दरमिया अपने
कोई ‘अगर’ ‘मगर’ ‘पर’ न होता।
काश! ना कहते
गर ये होता तब वो होता
काश! वो होता
जब ये होता
या ये न भी होता
मन में कितना सुंदर अहसास
रहा होता
ए काश!
कि ये काश! नहीं रहा होता।।