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Srikant Jena

Tragedy

3  

Srikant Jena

Tragedy

चोट

चोट

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हाँ, गिरा हूँ मैं बहुत बार।

गिरूंगा और सौ बार ,

गिरने से मैं डरता नहीं।

डर के हार मैं मानता नहीं,

माना ठोकर खाई है बहुत दफा

लेकिन हर बार कुछ नया ही सीखा 

- नया ही जाना‌ ।

ज़ख्म अभी भी है ताज़़े। 

ज़हन में अभी भी है वह यादें 

धुंधली यादों के भवसागर से,

निकल गया मैं कई आगे

कई आगे जब मैं निकल गया

न जाने ज़ख्म मेरा कब ठीक हो गया

दर्द गया‌‌‌‌, दुख गया।

गया मेरे भीतर का घमंड

वह चोट नहीं था, लेकिन था मेरे -  

भीतर का खोट प्रचंड ।


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