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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

4  

Devendraa Kumar mishra

Tragedy

गँवार हो गए

गँवार हो गए

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लहू बहता है जब, आजादी आती है 

ये कैसा लहू बहाया कि आजादी जाती है 

ये दर्द अब हमसे सहा नहीं जाता 

सड़क किनारे नंगा भविष्य देखा नहीं जाता 


ये कैसी प्यास है कि पीने को रक्त चाहिए 

ये कैसा पेट है कि जीने को चरित्र उलझा चाहिए 

आदमी का देख लो चीर कर सीना 

पता लग जाएगा, आदमी कितना है कमीना


कैसे विचारे देश के स्वतन्त्रता, परतंत्र की 

खबर आ रही है बच्चों के पेट तंत्र की 

कानून की मार, पेट की मार, गरीबी की मार 

खा खा कर मार हम गँवार हो गए।


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