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Ambuj Kumar Tiwari Mayank

Tragedy

4.8  

Ambuj Kumar Tiwari Mayank

Tragedy

नौकरी

नौकरी

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नौकरी होती चीज है क्या, यह पूछो उनसे जाकर 

अथक परिश्रम करते हैं जो, पर किस्मत के हैं जाकर

छोड़ी है जिन्होंने खुशियां सारी, खुशियों की ही खातिर

नौकरी होती चीज है क्या, यह पूछो उनसे जाकर


लोगों का तो कहना ही क्या, इनको दिखती है सफलता

बिल्कुल पता की है पीछे कितने, संघर्ष और असफलता

मेहनत वह भी करते अथक, जो हो न सके हैं सफल

इन बातों का शायद ना है, पास किसी के हल


रहते जो छोटे कमरे में, कमरों को ही घर बनाते हैं

कभी पेट भर मिलता खाना, भूखे कभी सो जाते हैं

दिन रात में फर्क है क्या, हम ना जाने यह पाते हैं

जीते हैं फिर भी सुख से, दुख खुद को अपना सुना कर

नौकरी होती चीज है क्या, यह पूछो उनसे जाकर


आती ना वापस हैं घर को, तीज त्योहार गुजर जाते हैं

वे तो कमरों पर ही अपने,सारे त्यौहार मनाते हैं

अक्सर सड़कों और गलियों में, किताबे लिए मिल जाते हैं

वे स्वयं ही अपने अभिभावक हैं, खुद समझदार हो जाते हैं


अर्थव्यवस्था सीखो उनसे, धन को वे कैसे बचाते हैं

दूरी के कोई नहीं मायने, कोसों पैदल चल जाते

हैं

फैशन होती है चीज क्या, हम न समझ ही पाते हैं

उम्मीद और आशा के बल पर, हम आगे बढ़ते जाते हैं


हमको न कभी यह लगता पता है, कब साल गुजर जाते हैं

कितने थे बिगड़े हम पहले, अब खुद ही सुधर जाते हैं

पहले करते रहते थे कमियां, अब तो सब ही लगे हैं खाने

छप्पन भोग ने इन्हें चाहिए, रह लेंगे खिचड़ी खा कर

नौकरी होती चीज है क्या, यह पूछो उनसे जाकर

बोझ किसी पर ना हम बनते, खुद ही बोझ उठाते हैं


अपनी सारी मायूसी को, खुद में ही हम छुपाते हैं

वह जनरल वाले डिब्बे में, पीछे खड़े मिल जाते हैं

मिल जाएं चाहे सब खुशियां, पर खुश होंगे उसको पाकर

नौकरी होती चीज है क्या, यह पूछो उनसे जाकर


और मैं कितना लिखूं बताऊं, यह दास्तान संघर्षों की

एक दिवस की नहीं कहानी, बात चलेगी वर्षों तक

बीती होगी ऊपर यह जिसके, उसको होगी सब बात बता

जिसने यह सब है स्वयं सहा, और को सकता बस वही बता


उनके संघर्षों के आगे, मेरी कविता का कोई मोल नहीं

जो और लिखो मैं उनके ऊपर, मेरे पास अब बोले नहीं!



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