Saumya Aggarwal

Tragedy

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Saumya Aggarwal

Tragedy

नारी की व्यथा

नारी की व्यथा

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शायद मैं कभी कह नहीं पाती

कि उस रात के बारे में सोच 

मैं कितना डर जाती

खो गई मेरी खुशी

उन जानी पहचानी सड़कों पर 

क्यों हर बार उंगली उठती 

मेरे ही चरित्र पर 

मेरा स्वाभिमान ही हमेशा 

क्यों चढ़ता सूली पर 

क्या आज का पुरुष समाज

यह भी नहीं जान पाया

क्यों हमेशा लगता है

कि जैसे पीछा कर रहा हो कोई साया

क्या इज्ज़त है नारी की आज

क्यों कोई 'कृष्ण' नहीं बचाता

अब 'द्रौपदी' की लाज!


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