बचपन - एक एहसास
बचपन - एक एहसास


बचपन हर किसी का सुनहरा हो
यह ज़रूरी नहीं होता
पर उसका एहसास
एक बुलंद इमारत की नींव सा गहरा है होता
कोई कपड़ों के लिए तरसता
किसी की छत से पानी टपकता
कोई मांग कर पेट भरता
कोई तपती हुई ज़मीन पर नंगे पाँव रखता
बचपन हर किसी का सुनहरा हो
यह ज़रूरी नहीं होता
पर उसका एहसास
एक बुलंद इमारत की नींव सा गहरा है होता
कोई कार की ठंडी हवा का लुत्फ़ उठाता
कोई अंगारे बरसाती धूप में आँखें चुंधियाता
किसी को स्कूल जाने के लिए बड़े प्यार से उठाया जाता
किसी को डांट फटकार के हर काम कराया जाता
बचपन हर किसी का सुनहरा हो
यह जरूरी नहीं होता
पर उसका एहसास
एक बुलंद इमारत की नींव सा गहरा है होता
किसी क
े माता-पिता उसे हर सुख का अनुभव कराते
किसी के बच्चे हर पल संघर्षों को ही गले लगाते
कोई अपनी पसंदीदा चीजों को बिन मांगे ही पा लेते
कोई अपने अरमानों को चुप रहकर ही दबा लेते
बचपन हर किसी का सुनहरा हो
यह ज़रूरी नहीं होता
पर उसका एहसास
एक बुलंद इमारत की नींव सा गहरा है होता
बच्चे तो बच्चे होते हैं
जो सुनहरे सपने संजोते हैं
क्यों समझदार लोग उन्हें
अहम की सुइयाँ चुभोते हैं
बच्चे तो पानी से सरल होते हैं
विपरीत परिस्थितियों में भी जो मुस्कुराते हैं
जीते हैं अपनी मस्ती में
ये तारे जमीन पर कहलाते हैं
बचपन हर किसी का सुनहरा हो
यह ज़रूरी नहीं होता
पर उसका एहसास
एक बुलंद इमारत की नींव सा गहरा है होता