नाचनी - एक लड़की की कहानी
नाचनी - एक लड़की की कहानी
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नाचनी
या एक लड़की के जीवन की अरमानों से भरी कहानी
नाचनी
या एक लड़की का जीवन उसी की ज़ुबानी
मजबूरी है घुंघरू जिसके
थिरकता मन पारे-सा
गजब का संतुलन देह में
पर स्थिर नहीं था मन उसका
नाचनी
या एक लड़की का चुलबुला बचपन और यादगार जवानी
ये नाच है या नाचती हुई है-एक नाचनी
ये सागर में उठती हुई लहरें हैं या मन में हिलौरे खाती
इठलाती, बलखाती उसकी जवानी
जो चाहती सच्चा जीवन-साथी जैसे दीया और बाती
जो किसी के प्यार में होकर दीवानी
अपनी ही मस्ती में नाच-2 कर
बन जाती है नाचनी
जिसके नाच में
अलौकिकता, मुग्धता, पावनता दिखाई देती थी
ऐसी थी वो नाचनी
क्या बस यही थी उसकी कहानी
नहीं कुछ और भी है उसी की ज़ुबानी
अब उसको अपना होश कहाँ
खुद से थी वो बेगानी
मन बावला, तन बावला
बन गई वो बावली
खोकर अपनी सुध-बुध को
नाचे बनकर नाचनी
सिर्फ नाच ही नहीं थी उसके पैरों की ये थिरकन
कुछ और भी था जो जानती थी
बस वो और उसका प्रियतम
पर दुनिया के लिए सब खेल-तमाशा
कोई ना जाने दिल की भाषा
चाहती थी वो प्यार की दुनिया बसानी
क्या बस यही थी उसकी कहानी
नहीं कुछ और भी है उसी की ज़ुबानी
संजोया था उसने एक सपना
चाहती थी वो एक औरत से माँ बनना
पर दुनिया देखे पर दुनिया सोचे
एक लड़की को बस एक सुन्दरी, बस एक नाचनी
पर आज हमें मिलकर एक नई सोच है बनानी
एक लड़की बनती तब सुन्दर
जब पनपे यौवन उसके भीतर
एक औरत बनती तब सुन्दर
जब पनपे जीवन उसके भीतर
तब नाचे बनकर वो जोगन
तब पाती है वह पूर्णता को
पूर्ण हुए उसका अधूरा जीवन
जब मिल जाए सच्चे प्रेम की
प्यार भरी निशानी
बस यही है, बस यही है
इस नाचनी की कहानी