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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

औरत पे उंगली

औरत पे उंगली

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एक औरत पर उंगली उठाने वाले

अपनी ही माँ का दूध लजाने वाले

क्या तुम्हारा जिस्म पत्थर का बना,

अपने रूह को पत्थर समझने वाले

थोड़ा ख़ुद को भी शीशे में देख ले,

दूसरों के ऊपर कीचड़ उछालने वाले

तू भी माटी का ही बना पुतला है,


तुझे भी जग में नारी ने ही जना है

स्त्री पे बुजदिल सा हाथ उठाने वाले

एक स्त्री पर उंगली वो उठाता है,

जिसका लहू पानी हो जाता है,

जिसने तेरी नाम का सिंदूर भरा है,

उस सिंदूर को कृष्ण करनेवाले

थोड़ा अपने गिरेबां में भी झांक ले,


दूसरों पे तानों के पत्थर फेंकने वाले

एक औरत पर उंगली उठाने वाले

वो दुनिया मे सबसे बड़े बुजदिल है,

जिसने उसको मां बनकर पाला है,

उसी औरत को हर दिन रुलाने वाले

ख़ुदा क्या तुम्हें ज़रा माफ़ कर देगा,

अपने ख़ुदा को रोज तोड़ने वाले



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