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niranjan niranjan

Tragedy

4.0  

niranjan niranjan

Tragedy

मैं नारी हूं

मैं नारी हूं

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मैं नारी हूं, 

मैं दुख की गगरी हूं।

दूसरों के दोषों की भी, मैं ही दोषी हूं।

सुन लेती हूं ऐसे शब्द, जिनको सुन नहीं पाती हूं।

मैं नारी हूं, मैं दुख की गगरी हूं।


हर कोई मुझसे कहता है अबला।

हर किसी का मन मेरे पर उछलता।

शब्दों से, कभी आंखों से, मुझ को खूब लजाता।

नियत होती है खराब उनकी,

मुझ को करना पड़ता है पर्दा।

मैं नारी हूं, मैं दुख की गगरी हूं।


मेरी इज़्ज़त लुटती है, सड़क और चौराहों पर।

हाथ जोड़ती हूं ,बदन छुपाती हूं,

पर दया ना आती मेरे पर।

मांगती हूं न्याय जब, दोष सिद्ध होते हैं मेरे पर।

मैं नारी हूं, मैं दुख की गगरी हूं।


किसी की मां, किसी की बहन,

और किसी की पत्नी कहलाती हूं

एक जन्म को मैं, कई रूपों में जी लेती हूं।

जीवन के सारे दुखो को, हंसकर के सह लेती हूं।

मैं नारी हूं, मैं दुख की गगरी हूं।



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