खबरे
खबरे
सुबह की खबर कुछ ऐसी
आंखें खुली थी,
खबर दरवाजे पर पड़ी थी।
हाथ में उठाया,
चश्मा लगाया।
पहली ही खबर ने,
मेरे दिल को दहलाया।
हाथ कांप रहे थे,
शरीर से पसीने छूट रहे थे
खबर ही ऐसी थी।
13 साल की लड़की,
आठवीं में पढ़ती थी।
गुरुजी की थी नियत खराब,
उसको बनाया था हवस का शिकार।
पढ़कर के खबर,
सोच रहा था मै।
जहां पनपते हैं संस्कार,
वहां हो रहा है अत्याचार।
कैसे बनेगा मेरा भारत महान।
पड़ी नजर खबर दूसरी पर,
था उसमें कुछ और ही दर्द।
5 साल की बच्ची थी,
कुछ दरिंदों के हाथ चढ़ी थी।
वह अंकल समझकर,
साथ खेल रही थी।
उन दरिंदों ने बनाया था,
उसको भी हवस का शिकार।
सोच रहा था मैं,
हवस के सामने गिर रहे थे हमारे संस्कार।
ऐसी खबरें रोज छपती है,
सुबह-सुबह आंखों में आंसू दे जाती हैं।
कुछ सीन होते हैं मनोरंजन के,
पर दर्द के सामने वह भी फीके होते हैं।