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niranjan niranjan

Abstract

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niranjan niranjan

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वह दर्द छिपाती रही

वह दर्द छिपाती रही

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वह हंसकर मुझसे कहती रही।

हर बातों पर वह मुस्कुराती रही।

हर दर्द को छुपा रही थी सीने में।

पर उसका हर दर्द आंखें बयां कर रही थी।


हर उलझी हुई बातों को सुलझा रही थी।

अपनों से बिछड़ जाने के बाद,

पल पल जीने का अनुभव बता रही थी।

उसके हर शब्द में दर्द था।

फिर भी वह चेहरे पर मुस्कुराहट ला रही थी।


मैंने कहा समझदार हो गई हो।

अपने दर्द को छिपाने की कला सीख गई हो।

वह हंस कर के बोली.....

समझदार कर दिया है इस जमाने की ठोकरो ने।

नहीं मैं तो बहुत पागल थी।


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