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niranjan niranjan

Children Stories

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बचपन

बचपन

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कहां गई वो झूलो की मस्ती,

वो कुल्फी के चटकारे।

रंग-बिरंगे गुब्बारे की मस्ती,

वो मदारी के तमाशे।

बचपन ढूंढता फिरता हूं,

मैं इन मेलों में।


बैठ पिता की पीठ पर,

मेला देखने जाते थे।

₹10 में पाव जलेबी,

छिक छिक खाया करते थे।

देख नाच बंदर का हम,

ताली खूब बजाते थे।

जादूगर की जादूगरी से,

हम डर जाया करते थे।

झोलों कि वह मस्ती,

आज हमको याद आ जाती है।

इसलिए मैं

बचपन ढूंढता फिरता हूं इन मेलों में।


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