'मुश्किल है बेटी होना'
'मुश्किल है बेटी होना'
मुझे सबकी जरूरत है
मैं क्या करूँ
किसी को मेरी जरूरत नहीं
इसलिए खुद से रूबरू करूँ
सब अपने ही तो है
मैं किनसे क्या कहूँ
बोलना पाप है
हम लड़कियों का
और सुनना संस्कार
सुनाना बेहयाई है
और मौन रहूं तो अहंकार
ज्यादा शिक्षित हुए
तो हम बेकार
कम शिक्षित हुए
तो हम गंवार
क्या करोगी लेकर
इतने ज्ञान का भंडार
अंत में चूल्हा-चौखा ही संभालना है
ऐसे दिए जाते है
परिवार में संस्कार
कर लेते है वे अपनी ज़िद्द पूरी
किसी भी तरह
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वो चाहे डांट हो या मार-फटकार
दबे रह जाते है
हम इसी तरह
मन मारकर सहना पड़ता है सब कुछ
किसी न किसी तरह
कल माँ बनकर
फिर अपनी बेटी को दबाएंगे
मेरी जगह मैं सही
और उसे ही केवल गलत ठहराएंगे
आज आजादी चाहिए
कल खुद ही उन पर पाबंदी लगाएंगे
चलती रहेगी ये परम्परा इसी तरह
कोई कुछ नहीं कर सकता
इच्छाओं का कत्ल कल भी होगा
बेटियां पैरों तले और बेटा शीर्ष पर होगा ।