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Anjali Rajak

Abstract

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Anjali Rajak

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भूख

भूख

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सुनसान सड़क है

कोरोना का माहौल है

सब घर में छिपे पड़े है

दूर-दूर तक आहट नहीं आ रही

बस वो आदमी बैठा दिख रहा है

किसी के चलने की


कोठरी के नीचे दुबक कर

जोरों की भूख लगी है उसे शायद

इसलिए बिलख रहा है पेट पकड़ कर

देख स्वान को मुँह में आधी रोटी दबाकर

झपट पड़ता है स्वान पर ही स्वान बनकर


जोरों की भूख लगी है उसे शायद

तभी नोच खा रहा है

जूठी रोटी को भी पकवान समझकर

देख दरोगा जी को छिप जाता है

अपनी फटी कम्बल में

न ठिकाना है


न इस भीड़ में उसका कोई अपना है

सब घरों में छिपे पड़े है

कोरोना के डर से

वो छिपता है फटी कम्बल में

सिर्फ दरोगा के डर से

जिसका कोई नहीं

उसे मौत से क्या डर

बस भूख मिटाना है

इसलिये फिरता रहता है दर-बदर।


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