जल
जल


जीवन भी मैं, समापन भी मैं
तरल भी मैं, ठोस भी मैं
न रूप मेरा, न है रंग
सबकी जरूरत हूं मैं,चाहे राजा हो या रंक
हर कोई मेरे पर आश्रित है
धनवान होकर भी
अति मूल्यवान हूं मैं,
कनक के बदले भी सब मुझे चाहते हैं
सबका सबकुछ यही रह जाता है
अंत में तृप्ति सब मुझमें ही पाते हैं ।