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-Kumar kishan

Tragedy

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-Kumar kishan

Tragedy

नाज़ो करम कर मेरे साथ चलना है तुझे.....

नाज़ो करम कर मेरे साथ चलना है तुझे.....

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नाज़ों करम कर मेरे साथ चलना है तुझे,

तेरे हुस्न की रवानगी उसे मंजूर नहीं

तेरे बढ़ते हँसी के ठहाके उसे मंजूर नहीं

तेरे रौशनाई में चमके वो उसे मंजूर नहीं

तेरे सिलवटों से काटों की चुभन होती है

तेरे हाँथों को थाम चलना उसे मंजूर नहीं

तेरे पैरों में जन्नत उतर आयी है

खुदा की रहनुमाई है,पाज़ेब छनक आयी है

तेरे अश्कों का उसे ऐतबार नही

उसकी आंखों में पिघलता नही ख्वाब कोई

उसके रंगों से बदन तेरा कटता है

उसकी बेरंग गली से निकलना है तुझे

नाज़ों करम कर मेरे साथ ही चलना है तुझे,


दिल-ए-मंजर दर्द उसे मंजूर नहीं

तेरे ज़ीस्त पर रहम आ भी जाये तो

तेरे जिस्म की हरारत उसे मंजूर नहीं

तेरे जख्मों की शरारत उसे मंजूर नहीं

पाक है नही खयाल उसके दिल जानी

उसकी बाहों से सिमटना उसे मंजूर नहीं

वलवला-ए-संग वो आबगीनों उसे मंजूर नहीं

उसकी किस्मत में शायद तु,उसे मंजूर नहीं

बन कर सीमाब तुझे ज़र्फ़ में ढल जाना नही

ज़ीस्त की आहनी में संवर जाना है तुझे

ज़ेहद जिंदगी काबू नही रहना है तुझे

नाज़ों करम कर मेरे साथ ही चलना है तुझे,


तेरे ख्वाबों को अहसासों की हवा उसे मंजूर नहीं

तेरे हाँथों की लकीरों से कोई उसे मोल नही

वो जो कहता है खुदा,खुदा है तो नही

उसे बड़ा खुद पर नाज़ है वो भला इन्सा ही नही

फिरदौस और है मगर मर्दों के कदमों में नही

क़ल्व-ए-रविश हौसलों को उड़ान देना है तुझे

आज बन्धों में सिमटना नही उन्हें तोड़ना है तुझे

वक़्त की गिरेबां पकड़ उससे लड़ना है तुझे

एक दफा गिर जाना सम्भलना ही नही

कई बार गिरना और गिरकर नींव जोडना है तुझे

बदन के जर्रे जर्रे में पिघलता और बनता है तुझे

नाज़ों करम कर मेरे साथ ही चलना है तुझे,


तेरे कदमों में जन्नत की सुबह होती है

तेरी नजरों में तहजीब-ओ-दरख्तें होती हैं

तु शाम से सहर हसीं रात सी होती है

तु रूह बन जर्रे जर्रे में सहर सी होती है

मेरे हिस्से की जिंदगी गोया तुझसे जुडी जाती है

क़बा घेर रखी है सूरत तेरी दुआ पढ़ी जाती है

फैली रूत मे अजब सी हवा जो तेरे लिए

जुल्म ही जुल्म है तेरी हर अदा तेरे लिए

तु शोला ही नही तु अथाह समंदर भी है

तुझमें मुहब्बत ही नही,तु भी इक़ कलंदर है

जहां में महताब नही बनना है तुझे

नाज़ों करम कर मेरे साथ चलना है तुझे!




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