STORYMIRROR

jagjit singh

Tragedy

3  

jagjit singh

Tragedy

जिंदा लाश

जिंदा लाश

1 min
213

मन ही तो है, कौन देखने वाला है, 

दुख कौन देखने वाला है, 

आंख ही तो है, कौन आंसुओं की कद्र करता है, 

कोई गैर नहीं, मारने वाले अपने ही हैं , 

धन, दौलत, ताकत, जितना निचोड़ना था, 

निचोड़ लिए, बस जान बाकी है, 

जैसे जिंदा, लाश जी रहा हो, 

मरने की ख्वाहिश, बस ताकत नहीं, 

मन भारी है, लेकिन सुनने के लिए, कोई नहीं, 

एक खुदा था, अब पता नहीं, कहाँ है, 

काश मुझे कोई पढ़ लेता, समझ लेता,

मैं एक जिंदा लाश हूँ.  


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy