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jagjit singh

Abstract

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jagjit singh

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वो सुबह कभी तो आएगी

वो सुबह कभी तो आएगी

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सुबाह, सुबह जिंदगी अपना

नकली चेहरा दिखाती रहती है। 

गव का झुग्गि,झोपडिय़ा, या फिर

शहर का बड़ी, बड़ी बिल्डिंगस्,

फिर बगल की बस्तियाँ, 


जी हाँ, जिंदगी सुबह, सुबह,

अपना नकली चेहरा

दिखाती रहती है। 


यहाँ तक की,

गली का कुत्ता को

तब भी और आज भी,

खबर नहीं है कि क्या करना है।


साहित्याला गुण द्या
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