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कुमार किशन 'बदर

Romance Classics

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कुमार किशन 'बदर

Romance Classics

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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बड़ा बहुत बड़ा कभी हुआ ही नही

बच्चा ही रहा, जो कभी बच्चा हुआ ही नहीं।


है तलब चाय की पीया जाए क्यों नही

ये न कहना के इसके बाद मय हुआ ही नही।


मकीं के गुल के सारे इरादे नेक थे साहब

हमनें कहा के नशे के बाद कोई नशा हुआ ही नही।


बड़े तअज्जुब से उसने खिड़कियां खोली थी

यक़ी दोनो था जो कभी हुआ ही नही।


हर रोज़ सहर वो नमाज़ अदा करने लगी है

दुआ करती रही जिसकी वो नज़र हुआ ही नही।


बड़े शहर के जो बड़े लोग हुआ करते थे

आया है चुनाव,वो किये जो कभी हुआ ही नही।


बहुत बचा कर रखा था नक़्श-ए-वफ़ा पर नज़र

जहां पड़ना था मुकम्मिल कदम पर नक़्श नज़र हुआ ही नही।


मेरे सर पर इक़ हाथ है खुदा का बड़े दिनों से

उसे खबर थी रक़ीबों की कुछ हुआ ही नही।


मेरे दिल में दबी इक़ ख्वाहिश है 'बदर'

उस ख़्वाहिश का तलबगार कभी हुआ ही नहीं।


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