नशा(नज्म)
नशा(नज्म)
हम भी नशे में तुम भी नशे में
जैसे कि जहां भी नशे में
नज़र मिलाओ नज़र भी नशे में
लबों से छूती वो मय भी नशे में।
ज़िक्र है उसका रोज़ नामों में
लिखा पढ़ा जा सकता है नशे में
मंजर में सब वाक़्यात नशे में
मेरे गीत गजल सब है नशे में,
आज उससे बात की और नशे में
वो नज़र में नज़र की बड़े नशे में
अश्क बांह पर निकल आये थे
वो रोते हुए गले आ लगा था नशे में।
बड़े गिले-शिकवे भी रहे हैं हममें
पर ऐसा नहीं के हम न हो नशे में,
बहुत से घर बिखरे और टूटे बे-नशे में
हमने जहां को संभाले रखा नशे में।
दिल में कली खिल उठे जो नशे में
ये नहीं की दिल भी मचल उठे नशे में
डूब कर देखा सूर्य भी सांझ संध्या के नशे में
सुबह आंखें लाल थी फ़िर भी था दिलबर नशे में।
हवाएं हैं लहरें भी कभी क्या मेरी सुनती हैं
सुनी है गर कभी तो वो हम रहे है नशे में
लिख रहा था मैंने हवाओं पर पते तेरे
लोगों का ये कहना है के मैं नशे में।