राधा का प्रेम.......
राधा का प्रेम.......
प्रात: होते ही, प्रभात होते ही,
राधा उठी झट-पट सी
देखे सारे द्वार को, अपने आँगन प्यार को
कहाँ से आएंगे, श्यामा मेरे
हर एक द्वार पर कुसुम बिछाए वो
करती-करती इंतजार श्यामा प्यारी
घर को संवार के, अपने मन को वार के
करती-करती इंतजार राधा प्यारी
जब घर में आ गए, चरण मेरे श्याम के
दिल की धड़कन बढ़ सी गई हैं
उतर आया नैनों में, दिल का सारा प्रेम जी
आँसुओं के साथ वह भी अब बह गया
ना रोक सकी राधा, खुद को अपने वश में यूँ,
देखते ही श्याम को, वह भी पिघल गई
होश ना रहा उसको दिन दुनिया का कहीं
वो तो अपने श्याम संग दूंगी दुनिया चली गई
ऐसा लग रहा था कि वक्त भी रुक गया
दोनों एक-दूसरे में ही खो गए
दोनों एक-दूसरे के ही होकर रह गए
देखकर जी भर के, लग गए गले कुछ यूँ
जैसे एक प्राण हैं, दो शरीर हो गए
जैसे एक आत्मा, दो जगह बँट गयी.

