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Dr Sushil Sharma

Romance

4  

Dr Sushil Sharma

Romance

अनुभूति (नवगीत)

अनुभूति (नवगीत)

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खिलखिलाती 

फूल सी तुम 

मन मनोहर छंद हो। 


मुग्ध हरियल पेड़ जैसी 

मुक्त आभा रूप हो।  

गंध कस्तूरी लिए तुम 

शिखर चढ़ती धूप हो। 


स्वस्तिवाचन सी मधुरमय 

गीत का आनंद हो। 


देख तुमको स्वप्न उमगे 

नेह के झरने बहे। 

स्पर्श से जन्मे पुलकते 

गीत हम गाते रहे। 


सांध्य बेला सी सुहागन 

प्रेम की पाबंद हो। 


सप्तवर्णी पुष्प निर्मल 

सांध्य क्षण अभिसार के। 

झरझरा कर नेह बरसे 

भीगते हम धार से। 


नेह कलियों सी महकती 

हृदय ब्रह्मानंद हो।



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