जहाँ रहना हमें अनमोल
जहाँ रहना हमें अनमोल
जहाँ न बोलना हमको
वहाँ हम बोल जाते हैं।
जहाँ रहना हमें ठंडा
वहाँ हम खौल जाते हैं।
जहाँ सीधा हमें रहना
अकड़ अपनी दिखाते हम।
जहाँ हो सीखना हमको
वहाँ खुद ही सिखाते हम।
जो दूजे की अगर हो बात
तिल भी ताड़ लगता है।
लगे सब कुछ सही अपना
ये जंगल झाड़ लगता है।
जो कहता मैं सही वो सब
तुम्हारी मैं नहीं सुनता।
चले इस राह ये दुनिया
किसी को न कोई गुनता।
सदा मैं ही रहूँ आगे
सदा मेरी ही बातें हों।
स
दा मुझसे ही दिन निकले
सदा मेरी ही रातें हों।
नहीं ये भावना अच्छी
नहीं ये फलसफे अच्छे।
चढ़े हो सत्य के घोड़े
पहन कर झूठ के कच्छे।
लगा कर लम्बा चंदन हम
करें अध्यात्म की बातें।
पढ़े पोथी जड़ें भाषण
करें अपनों से हम घातें।
लिखीं हैं चार ठो कविता
नकल कर कर के लाते हैं।
बकें अश्लील मंचों पर
मगर दिनकर कहाते हैं।
जहाँ रहना हमें अनमोल
वहाँ सब तौल आते हैं।
जहाँ रहना हमें ठंडा
वहाँ हम खौल जाते हैं।