चाय और तुम
चाय और तुम
गर्म हवाओ को धोपती रिमझिम बूंद
बेताब मन होठों पे शरारती हुजूम
कुछ जाहिर नहीं शब्दों में
निगाहों निगाहों से जी हुजूर
हाथों में सुकून_ए_क्लब किताब
प्यालों में सजी नज़्म_ए_बहार
हर चुस्की में नशा
निगाहों का निगाहों से इजहार ,
रोक न पाऊं खुद को आज
चूम ही लूंगा ईश्क की वो मुकाम
कुछ तो रहम करो इस कामिल पे
ये दिल दोनों पे फ़िदा
चाय और तुम ।