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क़लम-ए-अम्वाज kunu

Romance

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क़लम-ए-अम्वाज kunu

Romance

चाय और तुम

चाय और तुम

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गर्म हवाओ को धोपती रिमझिम बूंद

बेताब मन होठों पे शरारती हुजूम

कुछ जाहिर नहीं शब्दों में 

निगाहों निगाहों से जी हुजूर

हाथों में सुकून_ए_क्लब किताब

प्यालों में सजी नज़्म_ए_बहार 

हर चुस्की में नशा 

निगाहों का निगाहों से इजहार ,

रोक न पाऊं खुद को आज 

चूम ही लूंगा ईश्क की वो मुकाम 

कुछ तो रहम करो इस कामिल पे

ये दिल दोनों पे फ़िदा 

चाय और तुम ।


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