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राजेश "बनारसी बाबू"

Romance Others

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राजेश "बनारसी बाबू"

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संसर्ग

संसर्ग

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तेरे संग रहने से ये कैसा संसर्ग 

हो गया है?

तेरे संसर्ग रूपी जादू से मुझे प्यार

उमड़ आया है।

अब ना दिन में चैन ना रात में करार 

आया है?

ये कैसा तेरा प्यार उमड़ आया है?

तेरे संसर्ग से मैं जग बैरागी हो गई

हूँ।


तेरे प्यार में मैं अपना तन मैला

कर ली हूँ

यौवन की इस छाव में मैं अपना

मन मैला भी कर ली हूँ।

तेरे संसर्ग से मैं खुद भी बहक गई

हूँ।


प्रिय प्रेम की मिलाप में ये

घनिष्ठता कैसी है छाई?

मेरे बदन में ये यौवन की आग

कैसी उमड़ आई है?

रिश्तेदार नातेदार में भी तूने

 कैसी नाता है तुड़वाई?

तूने ये तृष्णा कैसी जगाई है?

तूने ये कैसी संसर्ग रूपी बाण

मुझ पे चलाई है?

तूने ये कैसा ये विरह की भावना

जगाई है?


तूने संसर्ग रूपी बाण चला के

मुझ में वासना की प्यास लगाई है?

हे संसर्गी तूने ऐसा लगाव लगाया है?

मैंने अपना तन मन धन सब

अर्पित कर दी।

ये कैसा अपना जाल बिछाया है?

अब मुझमें संसर्ग दोष व्याप्त कैसा

हो पाया है?

हे संसर्गी कैसी ये तेरी महिमा और

माया है?



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