निश्छल प्रेम
निश्छल प्रेम
फुरसत में दिल बहलाने की चीज हूँ,
मसरूफियत में किसे याद आता हूँ
जब सब रास्ते बंद हो जाते हैं ,
तब ही उनको मैं याद आता हूँ
लंबी है कतार उनके कद्रदानों की,
सबसे बाद में उसमें मैं आता हूँ
ख़ैरियत सबकी जब पूछ लेते है,
बचे लम्हों में मैं याद आता हूँ
उसने तमन्ना जो जाहिर की
वो उसकी खुशी के लिए कर गया
खैरात है क्या अहसास मेरे
बस दिल बहलाने के काम आता हूँ ?
मैंने तो की उससे तन की आरजू
बस उसके मन में मेरी मूरत बसे
क्या इसीलिए इस्तेमाल होता हूँ
सब भूल कर मुश्किल में काम आता हूँ
तल्ख अल्फाज सुनकर उनके
खून मेरा भी उबाल खाता है
अपने रिश्तों को बचाने खातिर
मैं सर अपना झुका आता हूँ
बस इसी उम्मीद में थामे है
दामन सहन शक्ति का
किसी दिन तो उन्हें भी समझेगा
मैं निःस्वार्थ भाव से चाहता हूँ ।