चांद की चांदनी
चांद की चांदनी
उस चांद को चांदनी से प्यार था
करता इंतजार हर रात था ,
कहने से डरता था
फिर भी उस पर मरता था
बारिश की बूंदों में
समंदर की लहरों में
फूलों की हर पंखुड़ी में,
ढूंढा करता था अपनी चांदनी को
हर पल तड़पता था फिर भी कहने से डरता था
उस चांद को प्यार था चांदनी से
अनोखी थे उनकी प्रेम कहानी ,
बिना कहे समझना
आंखों से बातें करना
करता था इंतजार उस चांद को चांदनी से था प्यार !