रँग ~ए ~इश्क
रँग ~ए ~इश्क
एक संदेश से तुझे याद का,
फरमान भेजा है सनम ,
तड़प - तड़प तेरी याद में ,
पैगाम भेजा है सनम।
लाख पहरों में भी कम,
कैसे होगा अपना ये इश्क ?
हर पहरे की जंजीर का,
हिसाब भेजा है सनम।
सुना धड़कता है तेरा भी दिल,
मेरे लिए उधर कहीं,
उसी धड़कन में हलचल मचाने का,
सामान भेजा है सनम।
इतने शोर में भी तूने सुन लिया,
मेरी दस्तक ~ए ~दिल की दास्ताँ,
इलाही शुक्रिया हर बात का,
ख्याल भेजा है सनम।
गम ये नहीं कि हम मिले नहीं,
खुशी ये है तूने पढ़ लिया,
मेरे संदेश का देकर ज़वाब,
तूने तोहफा भेजा है सनम।
तू जीत जाता है हर बार मुझसे,
मैं हार जाती हूँ तेरा इम्तिहान लेकर,
अपने होने का एहसास कराकर,
तूने रँग ~ए ~इश्क भेजा है सनम।