तुम और हम - - दो शब्द
तुम और हम - - दो शब्द
मेरे स्वप्नों के
महल की दर-ओ - दीवार
पर जब तुम अपनी नाज़ुक उंगलियों की जुम्बिश से
रंग की करती हो बारिश-
मानो महताब
आहिस्ता आहिस्ता उतर आता है जमीं पर
मेरी बांहों की दरमियाँ सुनकर मेरी गुजारिश -
दिल के
आशियाँ में बजने लगती हैं
पाजेब की रुनझुन-
कानों में गूंजने लगती हैं भौंरों की गुनगुन-
बगीचे भी महकते हैं
खिले हुए फूलों की गंध से--
हमारे जज्बात भी बहने लगते हैं
पाकर तुमको
बहते हुए दरिया के मानिंद से--
तारे भी बिखेर देते हैं
आसमां में रुपहली कनात सी-
तेरे लरजते होंठों पर उतरती है हुस्न की
बारात सी--
तेरे आगोश से
कब शब्बा खैर
करती गुजर जाती है रात सी-
दिल का जर्रा जर्रा करता है बस तेरी बात सी--
रात के पहलू से छूट कर
सुबहो की रोशनी गिरती है छम से-
मैं पूरा होता हूं तुम से और तुम पूरी होती है हम से-