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कुमार किशन 'बदर

Romance

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कुमार किशन 'बदर

Romance

हृदय की रफ़्तार

हृदय की रफ़्तार

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हृदय की तेज रफ्तार धीम कर गयी

वो गली से क्या गयी गम्भीर कर गयी

सांसों की आवाज़ाही में पीर कर गयी

वो गयी नज़र को शमसीर कर गयी

वन्दना की शुभ सहर विभावरी

दिनकर को तेज में लाल कर गयी

गिरी थी घाट पर गंगा की सी पवित्र

स्पर्श श्याम को भी राम कर गयी

निज भवन को बस स्पर्श मात्र थी

सारे भवन को गोकुल धाम कर गयी

मन सम्मोहन की प्रीत दे गयी

हृदव में खुद को मनमीत कर गयी

घन घटा घनघोर छा अँधेर कर रही

चपल चंचल आंखों से प्रदीपन कर गयी

है आजाद उसके चक्षुओं की बोल बतियां

वो नज़र को बिन लगाये बात कर गयी

हो गयी नाराज़ यानी जरा रहम बचा अभी

तोड़ कर रिश्ते-नाते,गले से आकर लग गयी

बदन बदन सिहर उठा शाम की बरसात गयी

यूँ सिमट रही है खुद को,आग आग कर गयी

वो बनी हवा के झोंके जैसे लोग बह गए

आ लगी गले मुझे,और ख्वाब पुरे कर गयी

हृदय की तेज रफ्तार धीम कर गयी

वो गली से क्या गयी गम्भीर कर गयी

सांसों की आवाज़ाही में पीर कर गयी

वो गयी नज़र को शमसीर कर गयी।


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