मैं अक्सर चुप रहती हूं
मैं अक्सर चुप रहती हूं


अंदर ही अंदर घुटती रहती हूँ ...
अक्सर कई जुल्म मैं सहती रहती हूँ ...
मैं अक्सर चुप रहती हूं ...
अगर बोल दूं दो शब्द भी किसी के सामने ...
तो संस्कार नहीं है इसमें ये अक्सर सुनती रहती हूँ ...
इसलिए मैं अक्सर चुप रहती हूँ ...
दोनो परिवार का मान सम्मान बस मुझे को ही देखना है ...
शर्म का पर्दा सिर्फ मेरे लिए ही बना है ...
उस पर्दे को ओढ़े रहती हूँ इसलिए मैं अक्सर चुप रहती हूँ ...
मेरा ख्याल रखे ना भला कोई सब का ध्यान रखने का जिम्मा मेरा है ...
दुःख दर्द मेरे तो सारे लगते ड्रामा हैं प्यार के मलहम को तरसती हूं ...
मैं अक्सर चुप रहती हूँ ...
पति से पहले ना खाना, सभी को खिलाकर फिर खुद खाना, ये कर्तव्य तुम्हारा है ...
अपने हर कर्तव्य को बखूबी निभाती हूँ ...
इसलिए मैं अक्सर चुप रहती हूँ ...
मेरी वजह से ना दुःखी हो परिवार मेरा ,
सब सभी को हँसता और खिलखिलाता देखना चाहती हूँ ...
अपनी आँखों के आँसू छुपा जाती हूँ ...
इसलिए मैं अक्सर चुप रहती हूं ...
पर जब भी मेरे माँ बाप के संस्कारों पे बात आएगी ...
तब मेरी भी जुबाँ खुल जाएगी ...
अक्सर चुप रहने वाली मैं भी कुछ बोल जाउंगी ...
जब भी मेरे गिरेबाँ पे कोई कीचड़ उछाले मैं चुप नही रह पाउंगी ...
मैं हमेशा चुप सी रहने वाली मैं भी बोल जाउंगी ...
अपने सम्मान के खातिर दुनिया से भी लड़ जाउंगी ...
कई बार गलती ना होने पर भी चुप सी और सहमी सी रहती हूँ ..
मेरी वजह से कोई मेरे परिवार पर उंगली न उठाएं इसीलिए मैं अक्सर चुप रहती हूँ।