सफर में हूं, सफर मैं रहा हूँ
सफर में हूं, सफर मैं रहा हूँ
मुसाफिर हूँ बस चल रहा हूं, सफर में हूं सफर मैं रहा हूँ,
मिल ही जायेगी मंजिल,मंजिल की तलाश मैं कर रहा हूँ
चल रहा हूँ, गिर रहा हूँ, देख मैं खुद ही संभल रहा हूँ।
जिंदगी के इम्तिहानो को, हँसकर पास मैं कर रहा हूँ।
चल रहा हूं मैं निरंतर,सदा तानों की भट्टी में पककर।
बस सोने के जैसे निखरने का प्रयास मैं कर रहा हूँ।
कब तक रूठेगी ये "क़िस्मत"की लकीरें मुझसे से
अपनी मेहनत से वक्त बदलने का विश्वास मैं कर रहा हूँ
जीवन मे ज्यादा कुछ भी पाने की मेरी इच्छा है नही,
दो वक्त की सुकून से रोटी मिले,यह आस मैं कर रहा हूँ।
मुसाफिर हूं बस चल रहा हूं, सफर में हूं सफर मैं रहा हूँ,
बस लक्ष्य को पाने के लिए,तैयारी खास मैं कर रहा हूँ।
