नारी गाथा
नारी गाथा
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है नारी जहाँ पर पूजी सदा, मैं कविता वहाँ की लिखती हूँ।
मैं खुद ही एक नारी हूँ, नारी गाथा वर्णित करती हूँ।।
जब नर -नारी में भेद नहीं, तो क्यूँ अंतर समझा जाता है
जहाँ देते लड़के को बढ़ावा, लड़की को रोका जाता है
नारी की सहनशीलता को उसकी कमजोरी समझा जाता है
जहाँ कथनी करनी में अंतर हो, मैं बात वहां की करती हूँ
मैं खुद ही एक.....
अपनी जान पर खेलकर एक माँ बच्चे को जन्मती है
फिर माँ की कोख में क्यूँ एक कन्या को मारा जाता है
जहाँ नारी ने नर को जन्म दिया,
वो क्यूँ पुरूष प्रधान देश कहलाता है
सामाजिक मर्यादा के नाम पर क्यूँ नारी को बांधा जाता है
जहाँ कथनी करनी में अंतर हो, मैं बात वहां की करती हूँ
मैं खुद ही एक.....
वेद पुराण, ग्रंथ सभी नारी की महिमा गाते हैं
वन-वन जो भटकी पति संग उन्हें अग्नि परीक्षा दिलाते हैं
चाहें सती हो या मीरा उन्हें अग्नि में जलाया जाता है
उन्हें जहर पिलाया जाता है
एक ओर इन्हें दुर्गा काली रूप में पूजा जाता है
जब करते बात बराबरी की तो धर्म का पाठ पढ़ाया जाता है
जहाँ कथनी करनी में अंतर हो, मैं बात वहां की करती हूँ
मैं खुद ही एक.....
मनचले वहशी दरिंदे क्यूँ अपनी हवस बुझाते हैं
उसमे भी वो नारी का वस्त्र दोष बताते हैं
फिर क्यूँ होता छोटी कन्याओं का बलात्कार है
अस्मत लूट जाने से हो जाता जीवन बेकार है
हो जाने पर विधवा उनको अछूत समझा जाता है
जहाँ कथनी करनी में अंतर हो, मैं बात वहां की करती हूँ
मैं खुद ही एक.....
एक बहन बेटी माँ बन कर अपना फर्ज़ निभाती है
शादी जब होती उसकी दो कुलों की शान बन जाती है
हर रुप में दिया उसने अपनी ख़ुशियों का बलिदान है
अंदर दुःख दर्द लिए बाहर से हँसती रहती है
ऐसी घर की चार दिवारी में मरना ना उसका आसान है
जहाँ कथनी करनी में अंतर हो, मैं बात वहां की करती हूँ
मैं खुद ही एक......
माटी की गुड़िया समझ जो कुचलने हमें आएगा
सौगंध हमें उस माटी की, माटी में वो मिल जायेगा
अब बहुत हुआ रोना धोना, खुले आसमानों में उड़ना होगा
पिंजरे में बाँधोगे तो तोड़ उसे उड़ना होगा
नारी कल्याण में नारी को नारी से जुड़ना होगा
नारी कल्याण में नारी को नारी से जुड़ना होगा।
जहाँ कथनी करनी में अंतर हो, मैं बात वहां की करती हूँ
मैं खुद ही एक.....