द्वेषरहित व्यक्ति का कलियुगी सांसारिक जीवन
द्वेषरहित व्यक्ति का कलियुगी सांसारिक जीवन
कहने को मैं भी कहदूं जमाने के सामने बहुत कुछ
लेकिन किसी के सामने तुम्हें नज़रों से गिराना ये मुझे मंज़ूर नहीं।।
जो झूठा है वो झूठा है जो सच्चा है वो सच्चा है
तुम्हारा यूँ झूठे का वकील बन जाना ये मुझे मंज़ूर नहीं।।
शिकायत है अगर मुझसे तो स्पष्ट कहना
यूँ मेरे सामने बेठकर मुँह फूलाना ये मुझे मंज़ूर नहीं।।
शिकायत उससे करो जो शिकायत को शिकायत समझे
जो तुम्हें ही ग़लत समझे उसे शिक़ायत का बताना ये मुझे मंज़ूर नहीं।।
तुम्हारे लिए तुम सही मेरे लिये मैं
लेकिन बार बार ख़ुद का आत्म सम्मान खो कर रिश्ते को बचाना अब ये मुझे मंज़ूर नहीं।।
कलियुग है ये इसमें कलियुग कि सी बातें होंगी
लेकिन कुलीन होकर भी दोषी बन जाना ये मुझे मंज़ूर नहीं।।