मन के उदगार
मन के उदगार
*_मन के उदगार_*
रूठे हुए अपनो को मना लेना
अपनो को अपना हाल सुना देना
ना रहे बाद में पछतावा किसी को
उनकी सुन लेना अपनी भी बता देना।।
वक़्त बहुत नाजुक हो चला है
कब क्या हो किसी को किसी की ख़बर नहीं
तुम हौंसला रखना थोड़ा और उनका भी बड़ा देना।।
किसी को नहीं ख़बर कौन सा पहर होगा आखिरी...
दिल खोल कर तुम उनको समझा लेना...
आँखों से मिलाना आँखे उनसे
थोड़ा सा रोना फिर मुस्कुरा देना।।
जीतने के लिए पड़ेगा तुम्हे लड़ना
जीतने के लिए पड़ेगा तुम्हे लड़ना
मेरी जरूरत पड़े तो बता देना
मेरी दुआओं में सदा से रहे मेरे अपने
ज़रूरत पड़े तो मेरे लिए भी तुम सिर झुका देना।।
सबकी सुनता है वो ऊपर वाला
मेरा भी एक खत पहुंचा देना
उसका चुनाव है बहुत अदुतीय
कभी पसंद आये मेरा कोई अपना तो
उससे पहले मुझे आकर उठा लेना।।
धीर बढ़ाना मेरा इतना ईश्वर
की सबको धीर में बंधा पाऊं
समझ देना मुझे मेरे दाता इतनी की
सबको में समझा पाऊँ।।
विनती है यही मेरी प्रभु आपसे
कि हम मनुष्य अब बहुत पछता रहे
हमने की प्रकृति से छेड़छाड़ उसकी सज़ा हम पा रहे
कोई रास्ता हो तो दिखलाओ प्रभु,तेरी शरण सब आ गए।।
गलत कर्म करे किसी ने लेकिन सजा प्रभु सब पा रहे
मैं बालक नादान हूँ समझ मुझे माफ़ कर देना
हुई गलती मुझसे या मेरे अपनों से सबकी सजा तुम मुझे दे देना
सबकी सजा तुम मुझे दे देना।
क्या पता कब लेखनी रुक जाए, मेरे अपनो तक ये पहुंचा देंना।