मेरी अनकही कहानी
मेरी अनकही कहानी


मेरे अधखिले अजन्मे जीवन की कहानी है यह ,
जो किसी को न बता सकी, मेरी ज़ुबानी है यह-
आज का दिन मेरे लिए कितनी ख़ुशियाँ लेकर आया,
"आप पापा बनने वाले हैं "- आज माँ ने पापा को बताया !
मैं देख न सकती थी, कुछ बोल न सकती थी,
पर, माँ- पापा की ख़ुशी को महसूस कर सकती थी ....
नाना-नानी,दादा -दादी, फूफा -बुआ ,
आज सबको मेरे आगमन का अंदेशा हुआ !
हर ओर ख़ुशी की लहर का आगाज़ हुआ ,
मेरी प्यारी माँ को आज खुद पर नाज़ हुआ;
लेकिन-
वह अगली सुबह तो कुछ और ही तूफ़ान लायी,
एक कली,जो माँ के मन में मुस्काई थी, वह मुरझाई,
आज मेरे छोटे-छोटे कानों में कुछ लफ्ज़ सुनाई पड़ रहे थे,
पापा माँ को डॉक्टर के पास ले जाने की बात कर रहे थे,
वे आज मेरा पहला दर्शन करना चाहते थे,
खुश तो थी मैं, कि मुझसे मिलना चाहते थे,
पर -
वहाँ माँ को एक मशीन से ले जाया गया,
एक चमकती रोशनी का घना साया मेरे ऊपर मँडराया,
मैं डर गयी, सहम गयी, मेरा कोमल मन घबराया,
एक पल को तो मैंने, खुद को बिलकुल तनहा पाया,
फिर मैंने कुछ सुना - डॉक्टर ने पापा को पास बुलाया,
“एक नन्ही सी कली खिलेगी घर में” उन्हें यह बताया,
उसके बाद तो - पापा का खिला चेहरा मुरझाया,
ऐसा आखिर क्या हो गया था, मुझे कुछ न समझ आया!
बोलो ना माँ - ऐसी वीरानी सी क्यों थी छाई??
उस दिन के बाद तुम क्यों ना मुस्कुराई?
मुझे तो इस दुनिया में आना था ना माँ .....
सुन्दर कली बन कर, तुम्हारी बगिया को सजाना था ना माँ......
उस दिन पापा ने तुम्हें क्यों दुत्कारा?
मैंने सुना था माँ, उन्हें तो एक लड़का चाहिए था प्यारा......
एक अजीब सी कशमकश से मैं घिर गयी,
मेरे हर सपने पर एक लकीर सी खिंच गयी ---
यह लकीर मेरे सपनों को कर गयी चकनाचूर,
मैं बहुत कुछ सोचने पर हो गयी मजबूर,
और फिर -
मेरे कोमल शरीर पर खंजर चला दिया गया
मुझे जन्म लेने से पहले ही सुला दिया गया ......
माँ ! तुम रो रही थीं, गिड़गिड़ा रही थी,
पर इस ज़ालिम समाज को तुम पर दया नहीं आ रही थी !
तुम्हारी गोद भरने से पहले सूनी कर दी गयी
मेरी हर तमन्ना, हर आस अधूरी कर दी गयी........
आज भी मुझे पता नहीं चला, कि आखिर मेरी क्या गलती थी ????
बस यही ना कि मैं लड़का नहीं, लड़की थी .......
मैं लड़का नहीं, लड़की थी.........