मकाम
मकाम
ये कौन सा मकाम है
जहां ना तुम हो
ना तुम्हारा साया है
अकेलापन महसूस करके
ये जी बहोत घबराया है
ये क्यूं जहन मे
अजीब सी हलचल है
ना तुम मिले हो
ना कोई मिलने की उम्मीद है
चाहत भी कितनी अजीब है
ना रूकती है ना थमती है
दिल को हमेशा बेकरारी सी
जरुर कर छोड देती
कुछ अनकही बातें
हमेशा तडपाती रहती हैं
अधूरे से ख्वाॅब दिल मे
करवट बदलते रहते है
कुछ रिश्ते बनते भी नही
और बिगड भी जाते हैं
गहरा घाव दिल पर छोडकर
अनजाने होकर रह जाते हैं
अक्सर ऐसा क्यूँ होता हैं
अनजाने अपनेसे क्यूं लगते हैं
भूलना चाहो तो भूला नहीं पाते
यादोंको उनकी दिलसे निकाल नहीं पाते
समय तो बडा तेजी से गुजरता है
पर ऐसा क्यूँ लगता है कभी कभी
जिंदगी का पल भी नहीं गुजरा अभी
और कभी पूरी जिंदगी गुजर गई
यहीं सोचकर घबराते हैं
मंजिल की तलाश में भटकते रहते हैं।