ख्वाब
ख्वाब
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ख्वाब तो ख्वाब होते हैं
इनका कहां बसेरा होता है
दिलसे निकलकर
आखों में समा जाते हैं
कभी आखों में लगते हैं ये चुभने
कभी अपनों को समझते हैं ये बेगाने
कभी बेगानों को समझते हैं ये अपने।
ख्वाब तो ख्वाब होते हैं
इनका कहां बसेरा होता है।
कभी आखों को करते हैं ये नम
टूटने से नहीं होता इनको कभी गम
रात की अधिंयारी में छुपके से आते हैं
बिखर जाते हैं ये झपकते ही पलक
सच होते देख संवर जाते हैं हम
टूटते टूटने से इनका निकलता हैं दम।
ख्वाब तो ख्वाब होते हैं
इनका कहां बसेरा होता हैं।
