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Khalida Shaikh

Romance

3  

Khalida Shaikh

Romance

परवाना

परवाना

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180


समझकर भी ना समझें

वो चाह हो तुम

बरसकर भी ना बरसे

वो बादल हो तुम

अपना सा लगे खोकर भी

वो रास्ते की एक ठोकर हो तुम

आसमां में छाई हुई रंगीन सी

एक साँझ हो तुम

किसी की उदासी भरी

एक खामोश गजल हो तुम

मिठी सी बातों में उलझा हुआ

एक अफसाना हो तुम

खुद ही अपनों से बेखबर

छूकर दिल तक दस्तक देनेवाला

एक परवाना हो तुम। 



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