काश मैं पंछी होती,,
काश मैं पंछी होती,,
काश मैं पंछी होती, दूर गगन उड़ जाती,
छल कपट की इस दुनिया से दूर मस्त पवन के झोंको में अपना दिल बहलाती,
काश मैं पंछी होती, बारिश की बूंदों से अपनी प्यास बुझाती,
छुप जाती पेड़ों के पत्तों में बूंदों की रिमझिम संग मीठे गीत सुनाती,
काश मैं पंछी होती, पंख फैलाए दूर गगन उड़ जाती,
उड़ने की फितरत में होती माहिर जिसे कभी भुला ना पाती,
काश मैं पंछी होती, दूर देश उड़ जाती,
देती संदेश मानवता का दुश्मनी की आग बुझाती,
काश मैं पंछी होती, खुद को विश्वास दिलाती,
है सारा आकाश मेरा ये सबको बतलाती,
काश मैं पंछी होती, सुंदर झरनों का पानी पीतीं,
मन चाहे जहां वहां सुंदर नजारों से अपनी आंखों की प्यास बुझाती,
काश मैं पंछी होती, सरहद पर जाती,
सहलाती वीरों का माथा और देशभक्ति के मधुर राग सुनाती,
काश मैं पंछी होती, जाती वृन्दावन धाम,
नीत करती दर्शन कान्हा के और रहती बिहारी धाम,
काश मैं पंछी होती,एक संदेश उसे देती,
दिखलाती बेबसी के आंसू और उसके दुःख सहती,
काश मैं पंछी होती, दुनिया के छल कपट से रहती दूर,
प्यार की दुनिया में बस जाती और और गमों से सबको रखती दूर,
काश मैं पंछी होती,एक जहां ऐसा बसाती,
जहां खिलते अनगिनत गुलाब के फूल और कांटों से सबकों रखती दूर,
काश मैं पंछी होती,उसके आंगन जा चहचहाती,
महसूस कर उसकी छुअन को फिर नील गगन उड़ जाती,
काश मैं पंछी होती,ना ही कोई बंधन सहती,
कर अपने अरमानों को पूरा फिर मैं भी हंसती और मुस्कुराती,
काश मैं भी पंछी होती,ये सारा जहां मेरा होता,
ना किसी से कोई शिकायत रहती ना ही कोई बेगाना होता,
काश मैं भी पंछी होती,सबको खुशियां अनगिनत देती,
अपने सतरंगी पंखों से बस खुशियों के रंगों से सबकी झोली भर देती,
काश तो बस काश रहता है हां मैं भी पंछी होती,
हो जाती किसी की बुरी मंशा का शिकार और अपने ही अंत के लिए हर पल तड़पती,
काश मैं पंछी होती।

